कहते है की मरने के बाद आत्मा शारीर का साथ छोड़ देती है और अगर मरने वाले
के मन में मरते समय कोई आखरी इच्छा रह जाती है तो उसकी आत्मा भटक ती
रहती
है । जी हा ऐसी ही कुछ कहानी है सेना
मुख्यालय के अधिकारी बाबा हरभजन सिंह की 1968 में सिक्किम के नाथुला दर्रे
के पास घोड़ों को ले जाते
वक्त नदी में गिरने से उनकी मौत हो गई थी। उसके बाद कई फौजियों ने दावा
किया कि उन्हें हरभजन ने चीनी घुसपैठ के बारे में अहम सैन्य सूचनाएं दीं।
सेना में बीते 45 साल से एक ही मोर्चे पर तैनात हरभजन सिंह अब जवान से कैप्टन बन गए हैं। चीन सीमा पर नाथुला दर्रे पर जान गंवाने वाले इस सिख फौजी को आस्थाओं ने न केवल जिंदा रखा है, बल्कि बाबा हरभजन बना दिया है। लेकिन, आस्थाएं कहीं अंधविश्वास न बन जाएं इसके लिए संयम की कुछ सीमाएं तय करते हुए सेना मुख्यालय ने बीते कुछ समय से उनकी सालाना छुंट्टी खत्म कर दी है।
सेना में बीते 45 साल से एक ही मोर्चे पर तैनात हरभजन सिंह अब जवान से कैप्टन बन गए हैं। चीन सीमा पर नाथुला दर्रे पर जान गंवाने वाले इस सिख फौजी को आस्थाओं ने न केवल जिंदा रखा है, बल्कि बाबा हरभजन बना दिया है। लेकिन, आस्थाएं कहीं अंधविश्वास न बन जाएं इसके लिए संयम की कुछ सीमाएं तय करते हुए सेना मुख्यालय ने बीते कुछ समय से उनकी सालाना छुंट्टी खत्म कर दी है।
बाबा
हरभजन को हर साल 14 सितंबर को छुंट्टी पर घर भेजने के लिए फौज को तीन बर्थ
एसी फर्स्ट क्लास में बुक करानी पड़ती थीं। दो जवानों की देखरेख में सभी
जरूरी सामान से भरा उनका बक्सा ट्रेन से उनके घर भेजा जाता था। स्थानीय
आस्थाओं के कारण नाथुला से इस सामान की विदाई और वापसी धार्मिक यात्रा की
तरह होने लगी थी। बढ़ती आस्था के कारण नाथुला स्थित बाबा हरभजन के मंदिर पर
चप्पलों का लगातार बढ़ता चढ़ावा सेना के लिए प्रबंधन की मुश्किलें खड़ी कर
रहा है। इस मंदिर में सात दिनों तक पानी रखने पर उसमें चिकित्सकीय गुण
पैदा होने की मान्यता के कारण पानी की बोतलों का भी अंबार लग रहा है।
एक
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बाबा हरभजन के मंदिर में लोगों की उमड़ती भीड़
के कारण अब भंडारे और प्रसाद वितरण जैसी परंपराएं भी बन गई हैं। लिहाजा
इसके विस्तार को सीमित करने की जरूरत महसूस होने लगी है। एक सिख फौजी के इस
मंदिर में धन के चढ़ावे का प्रबंधन भी सेना के लिए परेशानी का सबब है जिसे
सरकारी मद में दिखाना चुनौती है।पंजाब
के कूका में जन्मे हरभजन सिंह की भर्ती 1966 में सेना की पंजाब रेजीमेंट
में हुई थी।
पंजाब रेजीमेंट के इस फौजी की अशरीर मौजूदगी की आस्था के कारण 1987 में
वहां एक स्मृति स्थल बनाया गया जो अब बाबा हरभजन मंदिर बन गया है। हरभजन को
समय-समय पर प्रमोशन भी मिलते रहे हैं। बाबा हरभजन का भले ही आज हमरे साथ शारीर न हो पर उनकी आत्मा आज भी हम को चेन की नींद सुलाती है पूरी एक बटालियन की जगह अकेले ही शरहद पर पहरा देते है देश की सेवा करने का जज्वा इसी को कहते है बाबा हरभजन जहा कही भी होगे बस यही कहते होगे की ये शारीर और आत्मा भारत देश की रक्षा के लिए है ।
