मुरादाबाद:- हम भारत की आजादी का 70 वा जश्न मनाने की तैयारी कर रहे है बस कुछ ही समय बाद भारत के 125 करोड़ लोग तिरंगा फहराकर भारत आज़ादी के जश्न में डूब जायेगे। एक बार आज़ाद मुल्क में हम सांस लेकर हम उन शहीदों को याद करेंगे जिनकी कुर्बानियों से हमको आजादी मिली उसके लिए हमारे पूर्वजों ने कितनी ही कुर्बानियां दी उसमे से हमे कुछ कुर्बानी याद हैं, और कुछ कुर्बानी इतिहास के पन्नो में गुम हो गयी। हमने मुरादाबाद में ऐसी ही गुम कुर्बानीयो को जानने की कोशिश की गयी। आज़ादी की लड़ाई में मुरादाबाद की सरजमीं पर भी लोगो ने अपने प्राणों को हंसते हंसते न्योछावर कर दिया । लेकिन देश के ही कुछ गद्दारों ने देश से गद्दारी कर देश के लिए लड़ने वालों को शहीद करा दिया।
नबाब मज्जू खां का जो बहादुरशाह जफर के सूबेदार थे, और जून 1857 में अंग्रेजों को नैनीताल भागने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन उसके बाद रामपुर के नबाब की फौज की मदद से अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर मौत के घाट उतार दिया था। जिसकी कहानी आज भी गलशहीद में उनकी मजार पर मौजूद है।
शहर के इतिहासकार जावेद रशीदी बताते हैं कि 1857 के ग़दर में नबाब मज्जू खान ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे और यहां बहादुरशाह जफर का झंडा लहरा दिया था। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर गोलियों से भूना, यही नहीं उनका शव चूने की भट्टी में झोंक दिया था, जब इससे भी दिल नहीं भरा तो उनके पार्थिव शरीर को हाथी से पांव में बांधकर पूरे शहर में घुमाकर गलशहीद तक लाया गया, यहां लगे इमली के पेड़ में फाँसी पर लटका दिया था। यही नहीं जितने लोगों ने अंग्रेजों की खिलाफत की थी उन सभी को मारकर गलशहीद के इमली के पेड़ में सर काट कर टाँग दी जाती थी । इसी कारण आज इलाके को गलशहीद कहते हैं।
इतिहासकार जावेद रशीदी कहते हैं कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था ने मज्जू खां जैसे क्रांतिकारी का आज कहीं कोई स्थान नहीं मिला। लेकिन अब इस ऐतिहासिक विरासत और इस इतिहास को संजोने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।बहरहाल जश्न ए आज़ादी में ऐसे शहीदों को नमन करना भी हमारा फर्ज।
2:- सूफी अम्बा प्रसाद के पिता गोविंद प्रसाद भटनागर मुरादाबाद के अगवानपुर के रहने वाले थे 1835 में वह शहर के कानून गोयन मोहल्ले में आकर रहने लगे थे। यहा आकर उन्होंने अपना छापा खाना यानिकि अपना अखबार चलाने के लिए प्रिंटिंग मशीन लगायी। सूफी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 में माना जाता है। जिनको हिंदी, उर्दू, फ़ारसी का बहुत अच्छा ज्ञान था। 1887 में उन्होंने सितारे हिन्द अखबार निकाला था, 1890 में जमा बुल उलूम नाम से पत्रिका शुरू की थी अखबार ओर पत्रिका दोनो उर्दू में थी। अखबार के माध्यम से वह लोगो को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे। अंग्रेजो को यह बात अच्छी नही लगी और अम्बा प्रसाद को गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज दबिश देने लगे। अंग्रेजो से बचने के लिए 1905 में मुरादाबाद से पंजाब निकल गए। इनकी मृत्यु ईरान में हुई थी। जहाँ आज भी ईरान में उनकी मजार पर मेला लगता है। कानून गोयन में छापा खाना है।
3:- सन 1930 मे नमक सत्यग्रह आंदोलन चलाने के लिए मुरादाबाद के टाउनहाल पर हजारों की संख्या में लोगो एकत्र थे अंग्रेजो ने इन आंदोलनकारियो को तीतर बितर करने के लिए गोली चलवा दी जिसमें मदन मोहन, रहमत उल्लाह, लतीफ अहमद, नजीर अहमद, वा चार गुमनाम लोगो जिनका अता पता नही चला शाहिद हो गए। इसी के विरोध में जमामस्जिद पर सेकड़ो लोगो की गिरफ्तार कर लिया गया।
4:- 9 अगस्त 1942 को मुरादाबाद जिले के लोगो को गिरफ्तार कर लिया था इसी के विरोध में 10 अगस्त को राम मोहन लाल के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला जा रहा था। पान दरीबा पर जुलूस निकाल रहे लोगों को तीतर बितर करने के लिये अंग्रेज डीएम, वा पुलिस कप्तान बौरबाल ने गोली चलवा दी जिसमे मोती लाल, मुमताज खा, झाऊलाल, राम प्रकाश वा 11 वर्षीय जगदीश शाहिद हो गए। सेकड़ो घायल आंदोलन कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार कर लिया गया। सेकड़ो शहीदों का अतापता तक नही चला । जिसके विरोध में कांकाठेर व मछरिया रेलवे स्टेशन जला दिया गया। शहीदों की याद में है पान दरीबा पर शहीद स्मारक बना हुआ है।
नबाब मज्जू खां का जो बहादुरशाह जफर के सूबेदार थे, और जून 1857 में अंग्रेजों को नैनीताल भागने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन उसके बाद रामपुर के नबाब की फौज की मदद से अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर मौत के घाट उतार दिया था। जिसकी कहानी आज भी गलशहीद में उनकी मजार पर मौजूद है।
शहर के इतिहासकार जावेद रशीदी बताते हैं कि 1857 के ग़दर में नबाब मज्जू खान ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे और यहां बहादुरशाह जफर का झंडा लहरा दिया था। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर गोलियों से भूना, यही नहीं उनका शव चूने की भट्टी में झोंक दिया था, जब इससे भी दिल नहीं भरा तो उनके पार्थिव शरीर को हाथी से पांव में बांधकर पूरे शहर में घुमाकर गलशहीद तक लाया गया, यहां लगे इमली के पेड़ में फाँसी पर लटका दिया था। यही नहीं जितने लोगों ने अंग्रेजों की खिलाफत की थी उन सभी को मारकर गलशहीद के इमली के पेड़ में सर काट कर टाँग दी जाती थी । इसी कारण आज इलाके को गलशहीद कहते हैं।
इतिहासकार जावेद रशीदी कहते हैं कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था ने मज्जू खां जैसे क्रांतिकारी का आज कहीं कोई स्थान नहीं मिला। लेकिन अब इस ऐतिहासिक विरासत और इस इतिहास को संजोने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।बहरहाल जश्न ए आज़ादी में ऐसे शहीदों को नमन करना भी हमारा फर्ज।
2:- सूफी अम्बा प्रसाद के पिता गोविंद प्रसाद भटनागर मुरादाबाद के अगवानपुर के रहने वाले थे 1835 में वह शहर के कानून गोयन मोहल्ले में आकर रहने लगे थे। यहा आकर उन्होंने अपना छापा खाना यानिकि अपना अखबार चलाने के लिए प्रिंटिंग मशीन लगायी। सूफी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 में माना जाता है। जिनको हिंदी, उर्दू, फ़ारसी का बहुत अच्छा ज्ञान था। 1887 में उन्होंने सितारे हिन्द अखबार निकाला था, 1890 में जमा बुल उलूम नाम से पत्रिका शुरू की थी अखबार ओर पत्रिका दोनो उर्दू में थी। अखबार के माध्यम से वह लोगो को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे। अंग्रेजो को यह बात अच्छी नही लगी और अम्बा प्रसाद को गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज दबिश देने लगे। अंग्रेजो से बचने के लिए 1905 में मुरादाबाद से पंजाब निकल गए। इनकी मृत्यु ईरान में हुई थी। जहाँ आज भी ईरान में उनकी मजार पर मेला लगता है। कानून गोयन में छापा खाना है।
3:- सन 1930 मे नमक सत्यग्रह आंदोलन चलाने के लिए मुरादाबाद के टाउनहाल पर हजारों की संख्या में लोगो एकत्र थे अंग्रेजो ने इन आंदोलनकारियो को तीतर बितर करने के लिए गोली चलवा दी जिसमें मदन मोहन, रहमत उल्लाह, लतीफ अहमद, नजीर अहमद, वा चार गुमनाम लोगो जिनका अता पता नही चला शाहिद हो गए। इसी के विरोध में जमामस्जिद पर सेकड़ो लोगो की गिरफ्तार कर लिया गया।
4:- 9 अगस्त 1942 को मुरादाबाद जिले के लोगो को गिरफ्तार कर लिया था इसी के विरोध में 10 अगस्त को राम मोहन लाल के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला जा रहा था। पान दरीबा पर जुलूस निकाल रहे लोगों को तीतर बितर करने के लिये अंग्रेज डीएम, वा पुलिस कप्तान बौरबाल ने गोली चलवा दी जिसमे मोती लाल, मुमताज खा, झाऊलाल, राम प्रकाश वा 11 वर्षीय जगदीश शाहिद हो गए। सेकड़ो घायल आंदोलन कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार कर लिया गया। सेकड़ो शहीदों का अतापता तक नही चला । जिसके विरोध में कांकाठेर व मछरिया रेलवे स्टेशन जला दिया गया। शहीदों की याद में है पान दरीबा पर शहीद स्मारक बना हुआ है।





