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Sunday, 13 August 2017

स्वतंत्रता दिवस पर कुछ गुमनाम शहीदों को नमन

मुरादाबाद:- हम भारत की आजादी का 70 वा जश्न मनाने की तैयारी कर रहे है बस कुछ ही समय बाद भारत के 125 करोड़ लोग तिरंगा फहराकर भारत आज़ादी के जश्न में डूब जायेगे।  एक बार आज़ाद मुल्क में हम सांस लेकर हम उन शहीदों को याद करेंगे जिनकी कुर्बानियों से हमको आजादी मिली उसके लिए हमारे पूर्वजों ने कितनी ही कुर्बानियां दी उसमे से हमे कुछ कुर्बानी याद हैं, और कुछ कुर्बानी इतिहास के पन्नो में गुम हो गयी। हमने मुरादाबाद में ऐसी ही गुम कुर्बानीयो को जानने की कोशिश की गयी। आज़ादी की लड़ाई में मुरादाबाद की सरजमीं पर भी लोगो ने अपने प्राणों को हंसते हंसते न्योछावर कर दिया । लेकिन देश के ही कुछ गद्दारों ने देश से गद्दारी कर देश के लिए लड़ने वालों को शहीद करा दिया।

नबाब मज्जू खां का जो बहादुरशाह जफर के सूबेदार थे, और जून 1857 में अंग्रेजों को नैनीताल भागने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन उसके बाद रामपुर के नबाब की फौज की मदद से अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर मौत के घाट उतार दिया था। जिसकी कहानी आज भी गलशहीद में उनकी मजार पर मौजूद है।
शहर के इतिहासकार जावेद रशीदी बताते हैं कि 1857 के ग़दर में नबाब मज्जू खान ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे और यहां बहादुरशाह जफर का झंडा लहरा दिया था। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर गोलियों से भूना, यही नहीं उनका शव चूने की भट्टी में झोंक दिया था, जब इससे भी दिल नहीं भरा तो उनके पार्थिव शरीर को हाथी से पांव में बांधकर पूरे शहर में घुमाकर गलशहीद तक लाया गया, यहां लगे इमली के पेड़ में फाँसी पर लटका दिया था। यही नहीं जितने लोगों ने अंग्रेजों की खिलाफत की थी उन सभी को मारकर गलशहीद के इमली के पेड़ में सर काट कर टाँग दी जाती थी । इसी कारण आज इलाके को गलशहीद कहते हैं।
इतिहासकार जावेद रशीदी कहते हैं कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था ने मज्जू खां जैसे क्रांतिकारी का आज कहीं कोई स्थान नहीं मिला। लेकिन अब इस ऐतिहासिक विरासत और इस इतिहास को संजोने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।बहरहाल जश्न ए आज़ादी में ऐसे शहीदों को नमन करना भी हमारा फर्ज।

2:- सूफी अम्बा प्रसाद के पिता गोविंद प्रसाद भटनागर  मुरादाबाद के अगवानपुर के रहने वाले थे 1835 में वह शहर के कानून गोयन मोहल्ले में आकर रहने लगे थे। यहा आकर उन्होंने अपना छापा खाना यानिकि अपना अखबार चलाने के लिए प्रिंटिंग मशीन लगायी। सूफी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 में माना जाता है। जिनको हिंदी, उर्दू, फ़ारसी का बहुत अच्छा ज्ञान था। 1887 में उन्होंने सितारे हिन्द अखबार निकाला था, 1890 में जमा बुल उलूम नाम से पत्रिका शुरू की थी अखबार ओर पत्रिका दोनो उर्दू में थी। अखबार के माध्यम से वह लोगो को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे। अंग्रेजो को यह बात अच्छी नही लगी और अम्बा प्रसाद को गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज दबिश देने लगे। अंग्रेजो से बचने के लिए 1905 में मुरादाबाद से पंजाब निकल गए। इनकी मृत्यु ईरान में हुई थी।  जहाँ आज भी ईरान में उनकी मजार पर मेला लगता है। कानून गोयन में छापा खाना है।
3:- सन 1930 मे नमक सत्यग्रह आंदोलन चलाने के लिए मुरादाबाद के टाउनहाल पर हजारों की संख्या में लोगो एकत्र थे अंग्रेजो ने इन आंदोलनकारियो को तीतर बितर करने के लिए गोली चलवा दी जिसमें मदन मोहन, रहमत उल्लाह, लतीफ अहमद, नजीर अहमद, वा चार गुमनाम लोगो जिनका अता पता नही चला शाहिद हो गए। इसी के विरोध में जमामस्जिद पर सेकड़ो लोगो की गिरफ्तार कर लिया गया।
4:- 9 अगस्त 1942 को मुरादाबाद जिले के लोगो को गिरफ्तार कर लिया था इसी के विरोध में 10 अगस्त को राम मोहन लाल के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला जा रहा था। पान दरीबा पर जुलूस निकाल रहे लोगों को तीतर बितर करने के लिये अंग्रेज डीएम, वा पुलिस कप्तान बौरबाल ने गोली चलवा दी जिसमे मोती लाल, मुमताज खा, झाऊलाल, राम प्रकाश वा 11 वर्षीय जगदीश शाहिद हो गए। सेकड़ो घायल आंदोलन कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार कर लिया गया। सेकड़ो शहीदों का अतापता तक नही चला । जिसके विरोध में कांकाठेर व मछरिया रेलवे स्टेशन जला दिया गया। शहीदों की याद में है पान दरीबा पर शहीद स्मारक बना हुआ है।


Sunday, 21 June 2015

योग का नहीं तारीख का विरोध।


योग का विरोध नहीं तारीख का विरोध ।
आज समूचा विश्व योग दिवस मना रहा है ।इस की शुरुवात भी भारत ने की यह भी सब जानते है पर योग दिवस की तारीख 21 जून क्यों रखी गयी यह ज्यदा तर नहीं जानते होंगे। में आप को बताता हूँ।
आरआरएस के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेड गेवर थे  जिनका जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था और इन की मृत्यु 21 जून 1940 को हुई थी इन का योग से कोई सम्बन्ध नहीं था यह बहुत मोटे थे वा इन की तोंद निकली हुई थी इन की मोत डायबिटीज होने कारण हुई थी । क्यों की आरआरएस वाले इन का जन्म दिन मानते नहीं है क्योकि वह दी अप्रैल फूल के रूप में दुनिया में मनाया जाता है इसी लिए 21 जून को योग दिवस रखा गया है आने वाले सालो में यह हम को देखने को मिलेगा की योग दिवस के बेनर और पोस्टरों पर आरआरएस के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम के फोटो दिखाई देगे और योग दिवस के साथ समूचा विश्व पुण्यतिथि मनाता नज़र आएगा । में योग का विरोधी नहीं और ना ही योग ना करने के लिए कह रहा हूँ विरोध है तो केवल तारीख का । योग पर जितने भी परीक्षण हुए है उस में पाया गया है कि योग सब से ज्यादा जो देश बुद्ध को मानते उस देशो में योग और मार्शल आर्ट ज्यादा किया जाता है । पतंजलि ने भी योग लालन्दा विश्विद्याल में जा कर बुद्धिस्टों से सीखा था । जब समूचा विश्व इस बात को जनता है तो योग दिवस का दिन बुद्धपूर्णिमा के दिन मनाया जाना चाहिए क्यों की योग भी बुद्ध की देन है ।

Friday, 15 November 2013

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी कि जुबानी जंग

भारत कि दो सब से बड़ी राजनीतिक पार्टियां बाजपा और कांग्रेस लोकसभा चुनाव कि तैयारी कुछ इस तरह से कर रहे है कि दोनों ही पार्टिया के नेता आज कल पुरे भारत में जनसभा करके देश कि जनता को ये बता रहे है कि कोन सही है और कोन गलत बाजपा के नरेंद्र मोदी कॉग्रेस पर निसाना साधते हुए कांग्रेस कि बुराइयां करते हुए नज़र आते है । कांग्रेस के राहुल गांधी कांग्रेस कि उपलब्धियां गिनाते हुए नज़र आते है पर दोनों में से किसी ने आभी तक ये नहीं कहा है कि देश इस समय जिस संकट से गुजर रहा है उस से देश को किस तरह से निज़ात दिलायेगे आरोप प्रत्यापरोप तो खूब लगाये जा रहे है पर दोनों में से ये कहने को और बताने को कोई राज़ी नहीं है किस तरह कि योजनाओ को आगे भाविष्य में लागु करेगे जिस से देश कि अर्थव्यवस्था में सुधार आये किस तरह से बढ़ती कीमतो को कम किया जाये । सीमा पर पाकिस्तान और चीन से बढ़ते विवाद को किस तरह से कम किया जाये या खतम किया जायेगा , ऐसी कोन कोन से योजनाओ को लागु किया जाये जिस से देश के किसान को फायदा पहुँचे रोजगारो के अवसर बड़े भ्रष्ट्राचार से मुक्ति मिले और आतंकवाद को किस तरह से ख़तम किया जाये । ऐसे ना जाने कितने मुद्दे है जिस के बारे में इस देश कि जनता जानना चाहती है पर दोनों में से कोई भी इन बातो को बता रहा है और ना ही जबाब दे रहै बस सत्ता के लालच में ये दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे है ।

Friday, 12 April 2013

शहीद हरभजन की आत्मा देती है पहरा

कहते है की मरने के बाद आत्मा शारीर का साथ छोड़ देती है और अगर मरने वाले के मन में मरते समय कोई आखरी इच्छा रह जाती है तो उसकी आत्मा भटक ती
रहती है । जी हा ऐसी  ही कुछ  कहानी है सेना मुख्यालय के अधिकारी बाबा हरभजन सिंह की 1968 में सिक्किम के नाथुला दर्रे के पास घोड़ों को ले जाते वक्त नदी में गिरने से उनकी मौत हो गई थी। उसके बाद कई फौजियों ने दावा किया कि उन्हें हरभजन ने चीनी घुसपैठ के बारे में अहम सैन्य सूचनाएं दीं।
सेना में बीते 45 साल से एक ही मोर्चे पर तैनात हरभजन सिंह अब जवान से कैप्टन बन गए हैं। चीन सीमा पर नाथुला दर्रे पर जान गंवाने वाले इस सिख फौजी को आस्थाओं ने न केवल जिंदा रखा है, बल्कि बाबा हरभजन बना दिया है। लेकिन, आस्थाएं कहीं अंधविश्वास न बन जाएं इसके लिए संयम की कुछ सीमाएं तय करते हुए सेना मुख्यालय ने बीते कुछ समय से उनकी सालाना छुंट्टी खत्म कर दी है।
बाबा हरभजन को हर साल 14 सितंबर को छुंट्टी पर घर भेजने के लिए फौज को तीन बर्थ एसी फ‌र्स्ट क्लास में बुक करानी पड़ती थीं। दो जवानों की देखरेख में सभी जरूरी सामान से भरा उनका बक्सा ट्रेन से उनके घर भेजा जाता था। स्थानीय आस्थाओं के कारण नाथुला से इस सामान की विदाई और वापसी धार्मिक यात्रा की तरह होने लगी थी। बढ़ती आस्था के कारण नाथुला स्थित बाबा हरभजन के मंदिर पर चप्पलों का लगातार बढ़ता चढ़ावा सेना के लिए प्रबंधन की मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इस मंदिर में सात दिनों तक पानी रखने पर उसमें चिकित्सकीय गुण पैदा होने की मान्यता के कारण पानी की बोतलों का भी अंबार लग रहा है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बाबा हरभजन के मंदिर में लोगों की उमड़ती भीड़ के कारण अब भंडारे और प्रसाद वितरण जैसी परंपराएं भी बन गई हैं। लिहाजा इसके विस्तार को सीमित करने की जरूरत महसूस होने लगी है। एक सिख फौजी के इस मंदिर में धन के चढ़ावे का प्रबंधन भी सेना के लिए परेशानी का सबब है जिसे सरकारी मद में दिखाना चुनौती है।पंजाब के कूका में जन्मे हरभजन सिंह की भर्ती 1966 में सेना की पंजाब रेजीमेंट में हुई थी। पंजाब रेजीमेंट के इस फौजी की अशरीर मौजूदगी की आस्था के कारण 1987 में वहां एक स्मृति स्थल बनाया गया जो अब बाबा हरभजन मंदिर बन गया है। हरभजन को समय-समय पर प्रमोशन भी मिलते रहे हैं। बाबा हरभजन का भले ही आज हमरे साथ शारीर न हो पर उनकी आत्मा आज भी हम को चेन की नींद सुलाती है पूरी एक बटालियन की जगह अकेले ही शरहद पर पहरा देते है देश की सेवा करने का जज्वा इसी को कहते है बाबा हरभजन जहा कही भी होगे बस यही कहते होगे की ये शारीर और आत्मा भारत देश की रक्षा के लिए है । 

Tuesday, 12 March 2013

यू पी सरकार ने क्यों दिए बीस बीस लाख रुपये ।


उत्तर प्रदेश सरकार ने शहीदों और कानून-व्यवस्था बिगड़ने वालो में कोई फर्क नज़र नहीं आ रहा है। डीएसपी जियाउल हक की पत्नी को जो सरकार ने मुआबजा दिया नोकरी का वादा किया वह सब सही है, पर प्रधान और उसके भाई के परिवार वालो को जो मुआबजा दिया गया है उसका अर्थ समझ में नही आ रहा है, सरकार ने जो पेस दिया वह किस का रूपया था जनता का उसको इस तरह किसी को भी दे देना क्या उचित है प्रधान और उसका भाई दुकानों पर कब्जे को लेकर चली आरही रंजिश के शिकार हुए थे न हीं किसी युद्ध के मैदान में । सोलाह दिसम्बर की घटना के बाद ये कहा की जिस के साथ बलात्कार जेसी घटना होती है उत्तर प्रदेश सरकार उसको नोकरी देगी , अब सरकार को ये भी घोषणा करनी चाहिए की एक दुसरे को मरो मरने वाले को परिवार को बीस बीस लाख रुपये मिलेगे और ज्यदा बेहतर ये होगा की मारें वाले के परिवार को कुछ न सही पञ्च लाख तो मिलने चाहिए क्यों की उस के परिवार का व्यक्ति भी तो जेल जाये ग तो उस के परिवार का लालन पालन कोण करेगा । नन्हे प्रधान और सुरेन्द्र के परिवार वालो को क्या इस लिए ये रूपया दिया गया की वह समाजवादी पार्टी के कार्यकर्त्ता थे या रजा भईया के खास थे । जिस प्रकार सरकार दिखावे के लिए राज्य सरकार जनता के पेसे को बर्वाद कर रही है इस पर सरकार से किसी  मिडिया वाले ने नहीं पूछा की क्यों दिया गया प्रधान के परिवार बालो को ये पैसा । सरकार अपने वोट बैंक को बदने के लिए सरकार खजाने को दिखावे के लिए खली करती जा रही है चाहे वह लेपटोप बाँटना हो , बेरोजगारी भत्ता बतना हो , कन्याओ को तीस हज़ार के चेक बटने हो जहा जहा यह कार्यकर्म का आयोजन किया गया उस के लिए पेस कहा से आया वह भी जनता का था केवल और केवल दिखावा करने के लिए सरकार ने करोडो रूपए पानी में वह दिए और अगर विकास की बात करे तो सरकार कहती है की केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश को पैसा नहीं देती है ।     



Tuesday, 5 March 2013

उत्तर भारतीयों से सवाल

एक बार फिर से उत्तर भारतीयों पर राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने सतारा में सैनिक स्कूल में दाखिले के लिए आए बच्चों और उनके पैरंट्स के साथ मारपीट की है।
इस शर्मशार हरकत के बाद में उन उत्तर भारतीयों से ये सवाल पूछता हु जो लोग उत्तर भारत में शिव सेना और एमएनएस पार्टी का झंडा ऊचा करते है।
क्या उन्हें ये हरकत देखकर शर्म नहीं आती की उनके भाइयो और बच्चो के साथ ये लोग के सुलूग करते है महाराष्ट्र में क्या बस राजनीति की रोटिया सीखनी है इन लोगो को
ये देश हम सब का है भारत देश में रहने वाला हर कोई सब से पहले भारतीय है बाद में किसी राज्य का है तो राज ठाकरे जेसे लोग ये देश को क्यों तोड़ने पर लगे है
दूसरी बात ये की क्या डर है कानून को जो इन पर शिकंजा नहीं कसती है और क्यों उत्तर भारत के लोग इन का साथ देते है क्या इन को ये लगता है की हम इन के साथ है तो ये लोग हमें कुछ नहीं कहेगे इन सब को तब पता चलेगा जब किसी दिन ये लोग महाराष्ट्र में पिटते नज़र आयेगे । इन सब से क्या सिद्ध करना चाहते है ये सब