केंद्र सरकार महगाई को रोक पाने में नाकाम होती जा रही है और इस महगाई का ठीकरा अपने सर न फोड़ कर गठबंधन की सरकार पर फोड़ रही है, कांग्रेस पार्टी और अलग अलग दलो के नेताओ का कहना है की कई फेसले लेने में दिक्कत आती है गठबंधन की सरकार में इस लिए कई बार फेसले दबाब में लेने पड़ते है अगर महगाई को कम करना है और आर्थिक स्थिति को मजबूत कर ना है तो केंद्र में अकेले दम पर सरकार चाहिए और यही कारण है की बिगड़ते आर्थिक हालत व यूपीए सरकार के नीतिगत अनिर्णय के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था से दुनिया का भरोसा घटने लगा है। भारत की रेटिंग का आकलन स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया है, जो किसी देश की साख के नजरिए का सबसे निचला दर्जा है। मई 2014 में होने वाले आम चुनाव व मौजूदा राजनीतिक पेचीदगियों को देखते हुए सरकार की तरफ से आर्थिक सुधारों और महगाई कम करने की उम्मीद कम दिखाई देती है।भारतीय अर्थव्यवस्था की बदहाली और महगाई के लिए मनमोहन सरकार ही जिम्मेदार है। सरकार के पास जरूरी सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए संख्या बल का अभाव है या फिर अहम सुधारों को आगे बढ़ाने वाले नेता नहीं रहे हैं। यही वजह है कि महगाई वास्तविक क्षमता से भी अधिक गति से वृद्धि कर रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ऐसे बूढ़े टैक्नोक्रेट हैं, जो खराब दौर से गुजर रही भारतीय राजनीति से थक चुके हैं। कमजोर प्रबंधन की वजह से महगाई वृद्धि उम्मीद से ज्यादा चल रही है।
जनता अपना मत देकर सरकार को चुनती है पर क्या इन की आपस की लड़ाई में हमेश जनता ही पिसती रहेगी सरकार का जब गठबंधन होता है तब क्यों नहीं पूछते की हम दूसरी पार्टिया जो सरकार में शामिल हो रही है उन को शामिल कर ले या नही और इन दलो के दवाब में फेसले लेते हो तब क्यों नहीं बताते की इन पार्टियों की वजह से हम को गलत फेसला लेना पड़ रहा है चुनाव में जनता इन को बहार का रास्ता दिखाएगी बस एक दुसरे पर इलज़ाम लगा सकते है देश और देश की इस जनता के लिए कुछ नहीं कर सकते है ।





