उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की जांच में चार मंत्रियों को (क्लीनचिट) मिल जाने से मायावती सरकार ने राहत की सांस ली है। लोकायुक्त की जांच में संसदीय कार्यमंत्री लाल जी वर्मा, खाद्य एवं रसद मंत्री राम प्रसाद चौधरी, उद्यान मंत्री नारायण सिंह और होम्योपैथी मंत्री नन्द गोपाल नन्दी के खिलाफ मिली शिकायतों में कोई साक्ष्य नहीं मिला।
लोकायुक्त लागु होने से जहा भ्रष्ठाचार में लिप्त मंत्रियों को जेल का दरवाजा देखने को मिल रहा है इसी बजाह से उन पर लगाम भी लग सकेगी लेकिन लोअग इस का गलत उपयोग भी कर रहे है किसी के खिलाफ भी सिकायत दर्ज करा कर उस को और उस सरकार को या उस पार्टी को बदनाम कर ने का सही तरीका है क्यों की जब आरोप लगते है तो हर कोई देखता और पड़ता है पर जब बरी होता है तो कोई नहीं इसलिये किसी भी कानून का दुरूपयोग न करे तथ्य पास हो तब ही किसी के खिलाफ कदम उठाये /
लोकायुक्त न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) एन.के.मेहरोत्रा ने बताया कि साक्ष्यों के अभाव में इन मंत्रियों के खिलाफ मिली शिकायतों को निरस्त किया गया। इन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए थे। इससे पहले संस्कृति मंत्री सुभाष पाण्डेय भी लोकायुक्त की जांच में निदरेष पाए गए थे जबकि माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र, धर्मार्थ कार्य मंत्री राजेश त्रिपाठी, दुग्ध विकास मंत्री अवध पाल सिंह यादव और श्रम मंत्री बादशाह सिंह लोकायुक्त की जांच में दोषी करार दिए गए थे और मुख्यमंत्री मायावती ने इन चारों को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया था।

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