जहा मुलायम सिंह सत्ता में वापसी के लिए रूठो को मानाने का कम कर रहे है, और दुसरो को सहारा दे रहे है २०१२ के विधान सभा चनाव में वाल्मीकि जाती के १२ लोगो को टिकट दे कर आलोचकों का मुह बंद कर दिया है जहा मायावती ने पीछले पांच साल में इस जाती के लिए कुछ नहीं करा और इस बार भी कोई टिकट तक नहीं दिया है दलितों की नेता आज दलितों को ही नाराज़ कर रही है ये तो आने वाला २०१२ ही बतायेगा की पासा किस और जाता है और जनता किस के साथ है
क्या वाकई में उत्तर प्रदेश की जनता सता में बदलाब चाहती है मुलायम और मायावती दोनों के चुनावी विधान सभाओ के लोग अपने नेताओ से किसी न किसी बात से नाराज़ है कोई कहता है मुलायम आते है तो विकास होता है मायावती आती है तो गुंडा गर्दी कम हो जाती है इस बार जनता असमंजस में है की इस बार किस को लाये और इन दोनों के अलावा तीसरा कोई विकल्प अभी नज़र नहीं आता
आंबेडकर नगर चुनाव क्षेत्र में चीनी मिलों से लेकर सीमेंट फैक्टरी तक यहां के ज्यादातर उद्योग मुलायम के समय के लगाए हुए हैं. स्थानीय लोग अब भी कहते हैं कि जब मुलायम सत्ता में थे तो प्रदेश में गन्ने की पैदावार रिकॉर्ड ऊंचाई पर जा पहुंची थी
''मुख्यमंत्री होने के नाते पूरा उत्तर प्रदेश मेरा विधानसभा क्षेत्र है.'' लेकिन आंबेडकर नगर के लोग अपनी मुख्यमंत्री से विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं. उन्होंने 1995 में अकबरपुर का नाम बदलकर आंबेडकर नगर कर दिया था और इसे जिले का दर्जा प्रदान किया था. यहां से उन्होंने तीन बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा है
फिलहाल इस जिले के सभी पांच विधायक बसपा से हैं. इनमें से तीन कैबिनेट मंत्री हैं. आंबेडकर नगर के एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप पांडे कहते हैं, ''हमारा विश्वास डगमगा गया है. यहां विकास की गंगा होनी चाहिए.'' वे आगे कहते हैं, ''मायावती इसे उतना महत्व नहीं देतीं जितना कि सोनिया गांधी अपने गढ़ रायबरेली को देती हैं.'' आंबेडकर नगर से लखनऊ के बीच की सड़क पर मायावती की छाप साफ दिखती है. गोरखपुर तक डामर की अच्छी सड़क बनी हुई है
मुलायम के गृह क्षेत्र के विकास में खेलों के प्रति उनके प्रेम का भी योगदान है. यहां बाहर गायें चरती हैं तो दूसरी ओर एस्बेस्टस की बाड़ वाले हॉकी स्टेडियम के भीतर राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे होते हैं. वैसे तो इसका प्रबंधन भारतीय खेल प्राधिकरण करता है लेकिन स्टेडियम को यहां लाने का श्रेय मुलायम को ही जाता है
किसी भी चुनाव में विकास और रोजगार प्रमुख कारक होते हैं. इन मामलों में तो प्रदेश की मुखिया मायावती का ट्रैक रिकॉर्ड सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में होगा. विडंबना ही कहेंगे कि लखनऊ के आंबेडकर जयंती उद्यानों में झ्लिमिलाती रोशनियां रात भर चालू रहती हैं जबकि आंबेडकर नगर, जो कि मायावती का गढ़ माना जाता है, सहित बाकी का पूरा यूपी 12-14 घंटे की बिजली कटौती का संकट झेलता है
अफवाहों के बाजार में चर्चा गरम थी कि पार्टी से अमर सिंह की रवानगी हो जाने के कारण मुलायम के उद्योगपतियों से संबंध टूट चुके हैं, जिसका मुंह तोड़ जवाब सपा नेता ने हाल ही में अपने छोटे बेटे की शादी में दिया. देश के प्रमुख उद्योगपति अनिल अंबानी और सहारा इंडिया के प्रमुख सुब्रत रॉय जैसे उद्योगपति भी इस विवाह समारोह में शरीक होने विशेष रूप से सैफई आए. उनके हर कार्यक्रम में मौजूद रहने वाले अमिताभ बच्चन पत्नी जया बच्चन सहित यहां मौजूद थे
38 वर्षीय अखिलेश 132 चुनाव क्षेत्रों में अपनी क्रांति रथ यात्रा के सात चरण पूरे कर चुके हैं. मायावती से जहां मुलायम टक्कर ले रहे हैं वहीं उनका बेटा-जो कि सिडनी युनिवर्सिटी से इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग में स्नातक है-राहुल गांधी की युवा अपील का तोड़ है.
कुल मिलाकर यह उत्तर प्रदेश के लोगों के सामने मौजूद विकल्पों की एक बानगी है. अगर वे मुलायम को चुनते हैं, जो कि विकास के पैरोकार हैं, तो उन्हें बदले में कानून-व्यवस्था के बिगड़ने का जोखिम भी उठाना होगा. मुलायम के बेटे अखिलेश यादव ने इंडिया टुडे से कहा, ''गुंडागर्दी का नामोनिशान नहीं रहेगा.'' मैं खुद भी उस कमेटी का हिस्सा रहूंगा, जिसके पास गुंडागर्दी की शिकायतें की जा सकेंगी.'' उन्होंने आगे कहा, ''आप हमें एसएमएस या ईमेल कर सकते हैं या व्यक्तिगत तौर पर मिल सकते हैं.'
चाहे वह उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुलायम का गृह नगर इटावा हो या फिर पूर्वी उत्तर प्रदेश में मायावती के दबदबे वाला आंबेडकर नगर, मतदान करने के मापदंड एक जैसे ही हैं. विकास और रोजगार प्रमुख मुद्दे हैं. आंबेडकर नगर के किराना व्यवसायी अंगद पटेल कहते हैं, ''मायावती ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया.'' वे ध्यान दिलाते हैं कि जब मुलायम सत्ता में थे तो उद्योग और कृषि क्षेत्र दोनों को ही बढ़ावा मिला था. ''लेकिन,'' वे आगे कहते हैं, ''तब गुंडागर्दी भी ज्यादा थी
सन् 1989 में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री बनने पर उनकी मां से एक पत्रकार ने घिसा पिटा-सा सवाल पूछा था, ''आपको कैसा लग रहा है?'' इस पर नाक-भौं सिकोड़कर कुछ चिढ़ते हुए उन्होंने जवाब दिया था, ''कलेक्टर थोड़े ना बन गया है.'' यह लगभग दो दशक पुरानी बात है. तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके यादव बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती से अपनी कुर्सी वापस पाने की जीतोड़ कोशिशें कर रहे हैं. केंद्र और राज्य दोनों की सत्ता से बेदखल हो चुके 72 वर्षीय मुलायम का यह उस सारे नुक्सान की भरपाई का शायद आखिरी प्रयास हो.लेकिन मुलायम सिंह कोई नुकसान के मुंड में देखी नहीं दे रहे है/