नेताओ ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया की जनता कितनी भोली है चुनावी सभाओ में मीडिया में बस एक ही बात कही हम किसी से भी गठबंधन नहीं करेगे , बहुमत नहीं आया तो हम विपक्ष में बैठेगे ये बात बहुजन समाज पार्टी के अलाबा सभी राजनीती पार्टियों ने कही थी अभी तो नतीजे नहीं आये है और पहला वादा खत्म सब लालची है बस सत्ता चाहिए क्यों की जनता तो भोली है वह बातो में आजाती है और फिर पुरे पाच साल रोती है
उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे चाहे जो हों, राज्य की चार अहम राजनीतिक पार्टियों के लिए इनके क्या मायने होंगे,
समाज वादी पार्टी के लिए बुरी स्थिति तब बनेगी, जब उसकी सीटें 140 के करीब रहती हैं। ऐसे में उसे सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस पर निर्भर होना पड़ेगा। हालांकि कांग्रेस यह साफ कर चुकी है कि वो मुलायम के साथ गठबंधन नहीं करेगी लेकिन राजनीति में कोई भी घोषणा अंतिम नहीं होती। पर अगर कांग्रेस ने वाकई सपा को समर्थन नहीं दिया तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति आ जाएगी। यूपीए के लिए सिरदर्द बनी ममता बनर्जी से निपटने के लिए राज्य में कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद कांग्रेस सपा की सरकार बनवा सकती है। इससे केंद्र सरकार में मुलायम सिंह यादव को कुछ मंत्रालय मिल जाएंगे जबकि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी का दखल का बढ़ जाएगा। लेकिन यह गठजोड़ भी 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान कमजोर पड़ जाएगा क्योंकि समाजवादी पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की महत्वकांक्षाओं के साथ गठबंधन बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए सबसे अच्छी स्थिति तब होगी जब उसे 70 के आसपास सीटें हासिल हो। ऐसा हुआ तो वह किंगमेकर की स्थिति में होगी। सपा को सरकार बनाने के लिए पूरी तरह कांग्रेस पर निर्भर होना पड़ेगा और वह सपा से अपनी शर्तों पर सौदेबाजी कर सकेगी। और तो और, राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी अपने उम्मीदवार के लिए सपा से समर्थन मांग सकेगी। यदि कांग्रेस को राज्य में 60 के करीब या इससे काफी कम सीटें मिलती हैं और बसपा-भाजपा मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती हैं तब भी कांग्रेस को थोड़ा फायदा यह होगा कि समाजवादी पार्टी केंद्र सरकार के समर्थन के लिए मजबूर हो जाएगी।
बहुजन समाज पार्टी एग्जिट पोल के नतीजों को असली परिणाम का संकेत मानें तो बसपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटती नहीं लगती। कम से कम अपने दम पर तो नहीं ही। ऐसे में बसपा के लिए तो सबसे अच्छा यही होगा कि उसे पूर्ण बहुमत मिले। लेकिन यदि पार्टी सरकार बनाने के लिए भाजपा का समर्थन लेने के लिए मजबूर हुई तो इसका असर मायावती की कार्यशैली पर पड़ेगा। वो अब तक अकेले मजबूत फैसले लेने के लिए जानी जाती रही है लेकिन भाजपा के सरकार में शामिल होने पर वो ऐसा नहीं कर पाएंगी। इस स्थिति में बसपा के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचेगा कि वो केंद्र में कांग्रेस का समर्थन करे।
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए अगर पार्टी बसपा के साथ मिलकर राज्य में सपा की सरकार बनने से रोक ले तो यही उसके लिए अच्छी स्थिति होगी। भाजपा की सीटें उत्तर प्रदेश में लगातार कम होती रही हैं। यदि इस बार उसकी सीटों का आंकड़ा सुधरा तो यह भी उसके लिए अच्छी खबर होगी।
समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बुरी स्थिति तब होगी जब उसे सरकार बनाने के लिए न सिर्फ कांग्रेस बल्कि राष्ट्रीय लोक दल जैसे अन्य छोटे दलों का भी समर्थन लेना पड़ेगा। या फिर, तब जब बसपा और भाजपा दोनों मिलकर सरकार बनाने लायक सीटें हासिल कर लेंगी। यदि ऐसा हुआ तो सपा एक बार फिर यूपी की सत्ता से दूर हो जाएगी। इसका असर आने वाले लोकसभा चुनावों पर भी होगा।
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