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Friday, 23 March 2012

ज़रा याद करो कुर्वानी


23 मार्च 1931 आज भी देश के सुनहरे अक्षरों में दर्ज है भारत धरती के तीन जोशीले क्रांति करियो ने हस्ते हस्ते आज ही के दिन देश के लिए फासी के फंदे पर झूल गए थे इन तीनो लालो ने आपना नाम इतियास के पन्नो में सुन्हेरे अक्षरों में लिख व लिया | इन तीनो के बारे जितना पड़ा जाये और लिखा जय बहुत कम है पर आज ये तीनो इतियास के पन्नो में ही कही खोते नज़र आरहे है सरकार जी तरह गाँधी जी नेहरु जी और देश भगतो का जन्मदिन मानती है या उन को याद करती है इन को क्यों नहीं किया जाता  इन का बलिदान बलिदान नहीं था जो कुछ भी करा दुसरो ने ही करा, और ना स्कूल में भी इन की शहादत पर किसी भी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है क्या वजह है की हम इन को भूल जाते है अखबारों के किसी कोने में चार लाइनों में इन को स्धांजलि दी जाती है और बाकि पूरा अख़बार दूसरी खबरों से ही भरे होते है |
भगत सिंह ,राजगुरु, और सुखदेव क्रांति -कारी योजनाओ के मास्टर माइंड थे ये तीनो ऐसे देश भगत थे की हमेश तीनो साथ ही रहना कहते थे इन तीनो की खासियत यही थे की ये तीनो और बाकि सब साथी एक टीम वर्क में कम करते थे |
भगत सिंह जेल में सफाई कर्मचारी को बेबे कह कार पुकारते थे बेबे का हिंदी में अर्थ है माँ वह कहते थे की बचपन में साफ सफाई का कम मेरी माँ करती थी और आज तुम तो हुई माँ मेरी माँ और भेस को अपनी मोसी कहते थे भगत के अनुसार बचपन में मेरी माँ मुझ को दूध पिलाती थी और जवानी में भेस का दूध पीता हु तो वह मेरी मोसी हुई भगत इंसानियत में दूत थे एक बार कानपूर में बाढ़ आगे और वह लोगो की मद्त के लिए कई दिन तक वहा रहे और पानी की वजह से उन के पैर गल गए काफी समय तक उन को इस का इलाज करना पड़ा | 
    

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